पौष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर काशी के सभी भैरव मंदिरों में कालाष्टमी का पर्व अद्भुत आस्था और भव्यता के साथ मनाया गया। पूरे शहर में कालभैरव के जयकारों से वातावरण गुंजायमान रहा।प्राचीन कालभैरव मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गईं। भक्तों ने भैरव के विविध स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर परिवार और समाज की रक्षा के लिए अभय का वरदान माँगा।
बाबा का कंदमूल श्रृंगार विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।गर्भगृह, मुख्य मंडप और परिक्रमा मार्ग को फलों, पुष्पों और पत्तियों से सजाकर मनोहारी सजावट की गई। गर्भगृह के सामने रजत विग्रह विराजमान कराकर फलों की विशेष माला और रजत निर्मित मुंडमाला पहनाई गई। स्वर्णिम आभा वाले गणेश विग्रह को अनार की मालाएं अर्पित की गईं। इसी क्रम में खोवे से बनी 12 चांदी वर्क वाली मछलियां भी अर्पित की गईं, जिन्हें पूजन के पश्चात गंगा में विसर्जित कर दिया गया।रात्रि में हुई विराट आरती ने पूरे परिसर को अलौकिक प्रकाश से भर दिया।
इससे पहले सुबह पंचमकार पूजन की विधियां सम्पन्न हुईंमध्यरात्रि में तांत्रिक साधना का आयोजन किया गया, जिसमें काशी के प्रख्यात तंत्र साधकों ने बाबा लाट भैरव के समक्ष शीश नवाकर विश्वशांति की कामना की। बटुक भैरव मंदिर के महंत राकेश पुरी द्वारा तंत्रोक्त विधियों के साथ विशेष पूजा संपन्न कराई गई।शाम होते ही यज्ञ वेदी पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आहूतियों का क्रम शुरू हुआ, जो देर रात तक चलता रहा। हजारों दीपों की उजास से संपूर्ण परिसर दिव्य आभा से जगमगा उठा।
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